चीन राफेल लड़ाकू विमान को बदनाम कर वैश्विक हथियार बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। जानें कैसे चीन चला रहा है सूचना युद्ध।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद चीन की नाराज़गी
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद चीन ने सोशल मीडिया और कूटनीति के ज़रिए राफेल को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। चीन के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Weibo पर वायरल पोस्ट में कहा गया:
“राफेल खरीदकर भारत ने यूरोप के गुट में शामिल होने की कोशिश की है, जबकि चीन बिना शर्तों के हथियार देता है।”
चीन यह जताने की कोशिश कर रहा है कि भारत का राफेल, चीन के J-10CE से मुकाबला नहीं कर सकता।
चीन की डिजिटल जंग और राफेल की छवि पर वार
चीन का मुख्य मकसद सिर्फ भारत को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि वैश्विक हथियार बाज़ार में पश्चिमी देशों को चुनौती देना है। फ्रांस के राफेल विमान को चीनी मीडिया में “पुराना, महंगा और आधुनिक युद्ध के लिए अनुपयुक्त” बताया गया है।
Phoenix TV की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान राफेल की कमजोरियों ने उसकी वैश्विक साख को गिरा दिया। Weibo पर एक यूज़र ने लिखा:
“भारत-पाक संघर्ष में राफेल की हार ने पश्चिमी हथियारों की चमक उतार दी।”
राफेल बनाम J-10CE: क्या कहता है चीन?
चीन का दावा है कि 7 मई की हवाई भिड़ंत में पाकिस्तान के J-10CE ने भारत के राफेल को पछाड़ दिया। चीनी विश्लेषकों के अनुसार राफेल की कमजोरियां:
- कम रडार रेंज
- मिसाइल की छोटी मारक क्षमता
- धीमी इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेज़र
- कम चुस्ती और भारी रखरखाव
PLA (चीन की नौसेना शोध संस्था) के वरिष्ठ शोधकर्ता ली जीये ने कहा:
“राफेल की प्रदर्शन विफलता से संभावित खरीदारों में चिंता है।”
चीन का वैश्विक रक्षा बाज़ार में प्रवेश
इंडोनेशिया, मिस्र और मिडिल ईस्ट जैसे देशों में चीन राफेल को बदनाम कर अपने J-10CE को विकल्प के रूप में पेश कर रहा है। मिस्र में राफेल के एक संभावित क्रैश को लेकर भी शंका जताई गई है।
Wang Mingliang, चीन के रक्षा अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ ने कहा:
“पाकिस्तानी एयरफोर्स 12 सेकंड में टारगेट को खत्म कर देती है, जबकि भारत को 30 सेकंड लगते हैं।”
इंडोनेशिया के $8.1 बिलियन के राफेल सौदे पर भी पुनर्विचार की खबरें सामने आ रही हैं।
फिर भी राफेल क्यों बिक रहा है?
2025 के पेरिस एयर शो के बाद चीन यह नहीं समझ पा रहा कि उसकी J-35 जैसी उन्नत तकनीक वाली फाइटर जेट क्यों नहीं बिक रही, जबकि राफेल और F-35 जैसे विमान लगातार ऑर्डर पा रहे हैं।
एक वायरल चीनी पोस्ट में लिखा गया:
“F-35 खरीदना अमेरिका की सुरक्षा खरीदना है, राफेल खरीदना यूरोपीय मित्रता खरीदना है। चीन केवल हथियार देता है, सुरक्षा नहीं।”
निष्कर्ष: सूचना युद्ध से रणनीतिक लाभ
चीन राफेल के खिलाफ एक संगठित सूचना युद्ध चला रहा है। उसका उद्देश्य केवल भारत को कमजोर दिखाना नहीं बल्कि पश्चिमी रक्षा बाजार में सेंध लगाना है।
भविष्य में अगर चीन अपनी “राजनैतिक सुरक्षा” की कमी को दूर कर सके, तो वह वैश्विक रक्षा बाजार में एक बड़ा खिलाड़ी बन सकता है। फिलहाल, प्रौद्योगिकी के साथ-साथ रणनीतिक सहयोग भी हथियार खरीदने वालों के लिए अहम फैक्टर है।